रीतियों की समाप्ति का कोई भी तरीक़ा न्याय विरुद्ध कैसे हो सकता है, कैसे किसी धर्म विशेष के विरुद्ध हो सकता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि कुछ मौलाना , मौलवी नागरिक समान संहिता के सुझाव के विरुद्ध देश भर में हाय तौबा मचाये हुए है क्यूँकि उन्हें अपने समुदाय के लोगों को समान नागरिक अधिकार मिलने से उनके अधार्मिक फ़तवों पर चोट नज़र आती है लेकिन आश्चर्य तब होता है जब छद्म धर्म निरपेक्ष पार्टियाँ अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के तहत ऐसे संकुचित सोच के लोगों की क़तार में आकर खड़े हो जाते हैं।
जब संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद ४४ में साफ़ लिखा की देश में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए और देश की विविधताओं को देखते हुए सरकार को इस पर निर्णय लेना चाहिए। ७५ वर्ष तक सरकारें संविधान के इस अनुच्छेद पर गहरी कुंभकर्णी नींद में सोती रहीं, या सोने का बहाना करती रहीं या एक धार्मिक वर्ग को असंतुष्ट करने का जोखिम लेने से बचती रहीं हैं।
अब नरेंद्र मोदी सरकार ने विधि आयोग द्वारा नागरिक समान संहिता पर विधि आयोग द्वारा माँगे गए सुझावों का समर्थन किया है तो अधिकतर मुस्लिम नेता और छद्म धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ इस सुझाव के विरुद्ध लामबंद हो रहीं हैं। कह रहें है की यह धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है।
देबंद ने आज समान नागरिक संहिता के सुझाव के विरोध में विधि आयोग को एक पत्र भेजा है, आईयूडीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने तो बेहूदी बात करते हुए यह तक कह दिया की समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद सबको साड़ी पहननी पड़ेगी, असावुद्दीन ओवेसी को तो हर कार्य मुस्लिमों के विरुद्ध नज़र आता है और वह मुस्लिमों का अघोषित एक मात्र नेता होने का दावा करते हैं।
जब भी इन नेताओं या इनके समर्थन में आयी राजनीतिक पार्टियों से पूछा जाता है की इसमें धर्म विरुद्ध क्या है तो इधर उधर बगले झांकते हैं और प्रश्न को भटकातें हैं क्यूँकि इसमें कुछ ग़लत है ही नहीं। यह किसी के धर्म में दख़लंदाज़ी बिल्कुल नहीं कर रहा ।
आप जैसे विवाह करते हैं वैसे ही करेंगे, सारे रीतिरिवाज यथावत रहेंगे, अपनी मर्ज़ी से तलाक़ नहीं दे सकेंगे, हलाला नहीं कर सकेंगे, बहू विवाह नहीं कर सकेंगे, बच्चा गोद लेने के समान क़ानून होंगे।
कोई किसी भी धर्म की उस महिला से पूँछे जिसका सौहर उससे पूछे बिना सौतन घर में ले आता है और उसका पूरा जीवन बर्बाद कर देता है, जब महिलाओं को पिता की संपत्ति में वांछित अधिकार नहीं मिलता, तलाक़ के बाद पूरा गुज़ारा भत्ता नहीं मिलता , गोद लेने का समान अधिकार नहीं मिलता।
मेरे विचार से समान नागरिक संहिता इन कुरीतियाँ को समाप्त करने का एक प्रशंसनीय प्रयास हैं ना की किसी धर्म के रीति रिवाजों पर कुठाराघात। समान नागरिक संहिता के विरूद्ध यह दुष्प्रचार तुरंत बंद होना चाहिए।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को साधुवाद जो किसी वोट बैंक की फ़िक्र किए बिना सामाजिक कुरीतियाँ को समाप्त करने के लिए क़ानून बनाकर समाज सुधारकों की क़तार में खड़े हो रहें हैं। तीन तलाक़ की प्रथा समाप्त करने की हिम्मत भी मोदी जी ने ही दिखाई जिसका समर्थन अधिकतर मुस्लिम महिलाओं ने किया है। ऐसा ही समर्थन समान नागरिक संहिता को भी मिलने के आसार हैं