जुर्म की दुनिया से सियासत में कदम रखने की भी अतीक अहमद की कहानी किसी फिल्म स्टोरी से कम नहीं है. 1989 में अतीक अहमद ने जब चांद बाबा की हत्या की तब से बड़े बड़े नेता और पुलिस तक में अतीक अहमद का खौफ पैदा हो गया था तो आम जनता क्या चीज थी। उसके बाद इस कहानी में ट्विस्ट आय। क्यूंकि जब माफिया अतीक अहमद का खौफ लोगों के मन में उत्तर कर आने लगा तो उसके बाद पुलिस भी अतीक के पीछे पड़ गई. लेकिन अतीक तो अतीक था, वो कहां पीछे रहने वाला था। इसके बाद अतीक अहमद ने अपने और कदम बढ़ाये और सियासत की दहलीज पर पहुंचने में जुट गया.
लेकिन अतीक वो नहीं था जो सियासत के गलियारों में घूमने का शौक रखता था वो सीधे मंजिल पर चढ़ने की चाहत रखने वालों में था। इसके बाद साल 1989 में ही उसने राजनीति में जोरदार एंट्री की। इलाहाबाद की पश्चिमी सीट से विधायकी का चुनाव लड़ा लेकिनह वो भी निर्दलीय क्योंकि वो जानता था की अब उसे किसी पार्टी की जरूरत नहीं है। वो समाज गया था की अब अतीक अहमद नाम का सिक्का चल चुका है। लेकिन उसे इंतजार बस उस वक्त का है जब ऐलान हो तो सिर्फ उसकी जीत का और वो दिन भी आ गया। जब अतीक अहमद की जीत पर मुहर लगी। इतना ही नहीं चुनाव अधिकारी ने ऐलान भी किया। अब अतीक अहमद भारी अंतर से चुनाव जीत चूका था। इसके बाद जिले के डीएम ने शपथ दिलाई।
ज़रा सोचिए कल तक माफिया डॉन, पुलिस के लिए नाक में दम करने वाला अतीक अब विधायक बन चुका था। इतना ही नहीं एक राजनीति पार्टी ने अतीक का जोरदार स्वागत भी किया। अतीब अहमद ने अब समाजवादी पार्टी का दामन पकड़ लिया. लगातार 5 बार विधायक का चुनाव जीते के बाद अतीक का कद और बढ़ गया, इसके बाद अतीब अहमद ने संसद में जाने का फैसला किया इतना ही नहीं संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और जीता भी गया। राजनीति के सफर में एक बड़ा मोड़ तब आया जब सांसद बनने के बाद विधायकी वाली सीट खाली हुई। वो साल था 2004 का, इसी साल सांसद बनने के बाद अतीक अहमद की विधायक वाली सीट खाली हुई और उस पर चुनाव होने था।
उसे यकीन था कि उसकी छोड़ी हुई सीट पर उसका भाई ही जीत हासिल करेगा। उस वक़्त विपक्ष में मुकाबला राजू पाल से था। और बसपा से चुनाव लड़ राजू पाल आखिर जीत गया। इस जीत के बाद राजू पाल जैसे नए नवेले नेता ने अतीक अहमद को अंदर से हिला दिया। उसने राजू पाल को जड़ से ही खत्म करने की ठान ली और फिर वो तारीख आई 25 जनवरी 2005, जब राजू पाल की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में दो और लोगों की, देवी पाल और संदीप यादव की मौत हो गई. इस हत्याकांड में सीधे तौर पर उस समय के सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ का नाम सामने आया और अब अतीक अहमद का जुर्म की दुनिया में नाम और बढ़ गया, ऐसा इस लिए हुआ क्योंकि उसका मुकाबला करने की हिम्मत अब कोई नहीं कर सकता था यहां तक की जज भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे ।
ऐसे ही अतीक अहमद ने अपने गुनाहों की सीढ़ियां चढ़ी और माफिया अतीक अहमद का आतंक बढ़ता ही चला गया और अतीक के पापों का घड़ा भर गया था। इसके बाद उमेश पाल की किडनैपिंग के 17 साल पुराने केस में माफिया अतीक अहमद को दोषी करार दे दिया गया है।