Bihar Caste Census: बिहार में जाति आधारित जनगणना का पहला चरण शनिवार को शुरू हो गया। इस कवायद के पीछे राजनीतिक स्वार्थ माना जा रहा है। राज्य की गठबंधन सरकार जिसमें मुख्य रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग के नेतृत्व वाले मंडल-युग के राजनीतिक दल और भारतीय जनता पार्टी शामिल हैं, इस राजनीतिक खींचतान में दोनों एक दूसरे के विरोध में खड़े हैं। “मंडल” का प्रयोग अक्सर जातिगत समानता से जुड़ी राजनीति को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जिसका संदर्भ मंडल आयोग से है जिसने ओबीसी को आरक्षण प्रदान किया था।
सत्तारूढ़ महागठबंधन जाति-आधारित जनगणना से संभावित राजनीतिक लाभ को देख रहा है जो राज्य की अन्य पिछड़ा वर्ग की वास्तविक आबादी की पहचान करने में मदद करेगा, जिससे आरक्षण जैसी नीतियों की मांगों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। “महागठबंधन” में मुख्य रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) और उनके डिप्टी तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल शामिल हैं।पहले चरण में राज्य में कुल परिवारों की गिनती की जा रही है, जो 21 जनवरी को समाप्त होगी। 38 जिलों में 12.7 करोड़ की अनुमानित आबादी को कवर करने वाली इस प्रक्रिया में केवल जाति की गणना की जाएगी, उप-जाति की नहीं।
बिहार में जाति आधारित जनगणना क्यों हो रही है?
केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना कराई थी। हालांकि, गणना में त्रुटियों का हवाला देते हुए आंकड़े कभी जारी नहीं किए गए। बिहार सरकार ने पहले कहा था कि अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी का सही अनुमान लगाना फिलहाल मुश्किल है क्योंकि जनगणना प्रत्येक भारतीय की जाति पर डेटा एकत्र नहीं करती है। आखिरी जनगणना जिसने आधिकारिक तौर पर पूर्ण जाति का डेटा एकत्र किया था, वह 1931 में हुई थी। इसलिए, जाति-आधारित जनगणना के समर्थकों का तर्क है कि जनसंख्या के अनुसार कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं को लागू करने के लिए यह अभ्यास आवश्यक है। इसके मद्देनजर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नवंबर में कोटा पर लगी सीमा को हटाने की भी मांग की थी।
जाति आधारित जनगणना अभी क्यों आया?
जाति-आधारित जनगणना कराना एक लंबे समय से मांग रही है और इसके लिए बिहार विधानसभा द्वारा 2018 और 2019 में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया था। 1990 के दशक में मंडल आंदोलन के नेताओं में से एक, नीतीश कुमार द्वारा उठाई गई यह मांग, उनके जनता दल (यूनाइटेड) और भाजपा के बीच, जब तक वे गठबंधन में थे, एक विवादित मुद्दा थी। 2021 में पूरे देश में जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर राज्य के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी। हालाँकि, इस मांग को भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया था।
जाति आधारित जनगणना को लेकर क्यों उत्सुक है महागठबंधन?
एक व्यापक धारणा है कि भारत में पिछड़े वर्गों की गिनती सही ढ़ंग से नहीं की गई है और इसलिए उन्हें लाभों के आनुपातिक हिस्से से वंचित रहना पड़ता है। कुमार और यादव – जिन्होंने अगस्त में राज्य सरकार बनाने के लिए महागठबंधन के बैनर तले फिर से हाथ मिलाया – जाति जनगणना के पक्ष में हैं, क्योंकि उनके मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा इस वर्ग से है।